Wednesday, June 11, 2014

आज के दोहे

***नयी सदी से मिल रही, दर्द भरी सौगात!
बेटा कहता बाप से, तेरी क्या औकात!!
***अब तो अपना खून भी, करने लगा कमाल!
बोझ समझ माँ-बाप को, घर से रहा निकाल!!
***पानी आँखों का मरा, मरी शर्म और लाज!
कहे बहू अब सास से, घर में मेरा राज!!
***भाई भी करता नहीं, भाई पर विश्वास!
बहन पराई हो गयी, साली खासमखास!!
***मंदिर में पूजा करें, घर में करें कलेश!
बापू तो बोझा लगे, पत्थर लगे गणेश!!
***बचे कहाँ अब शेष हैं, दया, धरम, ईमान!
पत्थर के भगवान हैं, पत्थर दिल इंसान!!
***पत्थर के भगवान को, लगते छप्पन भोग!
मर जाते फुटपाथ पर, भूखे-प्यासे लोग!!
***फैला है पाखंड का, अन्धकार सब ओर!
पापी करते जागरण, मचा-मचा कर शोर!
***पहन मुखौटा धरम का, करते दिन भर पाप!
भंडारे करते फिरें, घर में भूखा बाप!!

Sunday, March 16, 2014

हम क्या क्या करें

ये करें और वो करें ऐसा करें वैसा करें,
ज़िन्दगी दो दिन की है दो दिन में हम क्या क्या करें,

जी में आता है की दें परदे से परदे का जवाब,
हम से वो पर्दा करें दुनिया से हम पर्दा करें,

सुन रहा हूँ कुछ लुटेरे आ गये हैं शहर में,
आप जल्दी बांध अपने घर का दरवाजा करें,

इस पुरानी बेवफ़ा दुनिया का रोना कब तलक,
आइये मिलजुल के इक दुनिया नयी पैदा करें..

Tuesday, January 28, 2014

इतिहास

जर्जर ईटोँ से तुम कब तक, भला रोक सकोगे आँधी को
सच बोलुँगा अब मैं यारो,
बुरा लगे चाहे गाँधी को.

क्यूँ इतिहास छिपा रखा है, बोलो सन् सत्तावन का
गाँधी का फोटो छापा क्यूँ नोटो पर मरणासन्न का
रस्सी तुमने ढूँढ निकाली बकरी वाली गाँधी की
भगत की रस्सी कब ढूँढोगे, जिसपर उसको फाँसी दी
गाँधी-नेहरू के जन्म-मरण पर तुम छुट्टी दे देते हो
भगत-चन्द्र की बात करूँ तो क्यूँ चुप्पी ले लेते हो
अंधे सत्ता के रखवाले पीतल कर देंगे चाँदी को
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे गाँधी को
जिसमें सुभाष लिखा महान, बोलो वो पन्ने कहाँ गये
जो पत्र लिखे थे"नाथू"ने,उनको बोलो क्यूँ दबा गये
क्यूँ इतिहास पढ़ाया हमको, कायर, मुगल , लुटेरोँ का
और अब तुम ही मिटा रहे हो, सच भारत के वीरोँ का
वीर शिवाजी की गाथाएँ, रखती याद जवानी थी
अब किसको है याद कहो पन्ना की, झाँसी रानी की
अंग्रेजोँ के तलवे चाटे, आज वो सोना लूट रहे
सच्ची बातोँ पर तुम बोलो, क्यूँ अपनी छाती कूट रहे
तुम सब दोनों गालोँ पर ही थप्पड़ खाने के आदी हो
सच बोलुँगा अब मैं यारो, बुरा लगे चाहे गाँधी को |

Wednesday, January 1, 2014

नव वर्ष



नव वर्ष कि प्रथम भोर!
करती है अंतरमन विभोर 
हो जीवन में उत्कर्ष
स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष।
प्रथम रश्मियाँ अपने संग
लाएँ आशा और उमंग
भरें जीवन में हर हर्ष
स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष।
फैले मानवता का धर्म
शिखर छू लें सब सत्कर्म
यही हो जीवन का निष्कर्ष
स्वागत है नव वर्ष धरा पर
स्वागत है नव वर्ष।

Friday, August 30, 2013

खामोशी


कभी कभी ज़िन्दगी कुछ सवाल पूछती है,

जवाब सामने होते है और……खामोशी

मुस्कुराती है और मेरा नसीब पूछती है,
जवाब सामने होते है और……खामोशी



कभी अश्क बनकर जज़्बात उठते है,

वजह सामने होती है और……खामोशी

बेगाने हसीन खयाल उठते है,

वजह सामने होती है और……खामोशी

हसरतों की कशमकश मे गाफ़िल हो जाते है,

ख्वाब सामने होते है और……खामोशी

मसर्रत के माय्ने हम बदल देते है,

ख्वाब सामने होते है और……खामोशी



ज़िन्दगी के सवाल मुकम्मल हो ना हो,

जवाब सामने होते है और……….खामोशी.....

Tuesday, July 23, 2013

क्या फर्क पड़ता है

क्या फर्क पड़ता है
जब आंकड़ों में विकास जारी  हो
और सामूहिक आत्महत्या की तैयारी  हो
रोटी के लिए संघर्ष
पानी विष का प्याला
त्रासदी और महामारी
उसमे भी घोटाला
मौत तो सेक्युलर है
न टोपी देखेगी न ललाट पर चन्दन
बस अचानक ही टेटुआ दबाएगी
और उसी क्षण सांस थम जायेगी
आज शर्म से नतमस्तक
ईमानदारी है
लूट का अखिल भारतीय कार्यक्रम
का  सीधा प्रसारण जारी है
चलो मूक दर्शक बन रियलिटी शो देखते हैं
क्या फर्क पड़ता है  ................

Wednesday, July 10, 2013

दूसरा पहलू

सुन्न हो गयी हजारों आवाजें पुकारते पुकारते |
अपलक रह गयी कितनी निगाहें, निहारते निहारते ||
कहीं मांग का ‎सिन्दूर, तो कहीं ‎राखी का रिश्ता |
कहीं सूनी गोद हुए तो कहीं ‎ आसरा ही छूटा. ||
'उफ़! क्यूँ है ये मंज़र बेबसी का ', इस् से क्या होगा ..|
हर हाथ बढे  ‎सहारा बन यही है बेहतर मौका ||
आज ‎इंसान के भीतर, इंसान को जगाना होगा , ||
ऐ ‎ खुदा! तेरे इम्तेहान का दूसरा पहलू भी निभाना होगा ||||||||

Saturday, June 15, 2013

वक़्त नहीं

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं..

माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को हम मार चुके
अब उन्हें दफनाने का भी वक़्त नहीं..

सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
गैरों की क्या बात करें, जनाब,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं..

आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का वक़्त नहीं..

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसानों की क्या कद्र करें
जब अपने सपनों के लिए ही वक़्त नहीं..

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालों को
जीने का भी वक़्त नहीं..

Friday, May 31, 2013

कल ये हों ना हों

आज एक बार सबसे मुस्करा के बात करो
बिताये हुये पलों को साथ साथ याद करो
क्या पता कल चेहरे को मुस्कुराना
और दिमाग को पुराने पल याद हो ना हो..

आज एक बार फ़िर पुरानी बातो मे खो जाओ
आज एक बार फ़िर पुरानी यादो मे डूब जाओ
क्या पता कल ये बाते
और ये यादें हो ना हो

आज एक बार मन्दिर हो आओ
पुजा कर के प्रसाद भी चढाओ
क्या पता कल के कलयुग मे
भगवान पर लोगों की श्रद्धा हो ना हो

बारीश मे आज खुब भीगो
झुम झुम के बचपन की तरह नाचो
क्या पता बीते हुये बचपन की तरह
कल ये बारीश भी हो ना हो

आज हर काम खूब दिल लगा कर करो
उसे तय समय से पहले पुरा करो
क्या पता आज की तरह
कल बाजुओं मे ताकत हो ना हो

आज एक बार चैन की नीन्द सो जाओ
आज कोई अच्छा सा सपना भी देखो
क्या पता कल जिन्दगी मे चैन
और आखों मे कोई सपना हो ना हो....

Friday, May 10, 2013

चाँद


अगर चाँद असमान से उतरे तो आम हो जाये,
तेरे नाम की एक खूबसूरत शाम हो जाये,
अजब हालात हुए की दिल का सौदा हो गया,
मुहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाये,
मैं खुद भी तुझसे मिलने की कोशिश नहीं करूँगा,
क्योंकि नहीं चाहता कोई मेरे लिए बदनाम हो जाये,
उजाले अपनी यादों के मेरे साथ रहने दो,,,,
जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाये !!

कोई पैगाम नहीं





कोई पैगाम नहीं ......
जो गुजर गयी उसकी क्यों शाम नहीं......
लाख तदबीर की दर्द-ए-दिल को क्यों आराम नहीं ......
मेरे नाम से क्यों तू गुमनाम नहीं ....
हर शक्श की किस्मत मै क्यों इनाम नहीं .....
माना दिल के अहसासों का कोई दाम नहीं ....
पर मेरी कहानी मै अब क्यों तेरा नाम नहीं ....
मुझे डर है आरज़ू न तेरी मिट जाये “शमा”....
कई दिनों से तेरा कोई पयाम, कोई पैगाम नहीं ......


Tuesday, April 2, 2013

कानपुर


इस शहर में सब कुछ अपना सा लगता है,
जीवन इस शहर में सपना सा लगता है

वो खुबसूरत सी मोतीझील की शाम
हाथों में हाथ लिए प्रणय संबंधों के नाम,

रेव मोती से लेकर जे के टेम्पल का सफ़र
यहाँ होता है नए रिश्ते जुड़ने का काम,

स्टूडेंट्स के है यहाँ दो ठिकाना
कभी बनारसी वाले की चाय तो कभी नालंदा वाले का खाना

अब हॉस्टल का स्टाइल भी घर सा लगता है,
जीवन इस शहर में सपना सा लगता है,

वो चिड़ियाघर जाना, दोस्तों को चिढाना
और गिलहरियों को पॉपकॉर्न खिलाना,

शाम को आना पढ़ते पढ़ते सो जाना
और सपनों में भी कानपूर में खो जाना,

इस शहर के हर एक मोड़ से रिश्ता पुराना सा लगता है,
जीवन इस शहर में सपना सा लगता है.

Saturday, March 2, 2013

आवारापन

तुम पूछो और मैं न बताऊँ ऐसे तो हालात नहीं,
एक ज़रा सा दिल टूटा है और तो कोई बात नहीं

किस को ख़बर थी साँवले बादल बिन बरसे उड़ जाते हैं,
सावन आया लेकिन अपनी क़िस्मत में बरसात नहीं

माना जीवन में औरत एक बार मोहब्बत करती है,
लेकिन मुझको ये तो बता दे क्या तू औरत ज़ात नहीं

ख़त्म हुआ मेरा अफ़साना अब ये आँसू पोंछ भी लो,
जिस में कोई तारा चमके आज की रात वो रात नहीं

मेरे ग़मगीं होने पर अहबाब हैं यों हैरान "क़तील",
जैसे मैं पत्थर हूँ मेरे सीने में जज़्बात नहीं..

Sunday, February 17, 2013

मै

तुम नयी विदेशी मिक्सी हो,मै पत्थर का सिलबट्टा हूँ !
तुम AK 47 जैसी, मै तो एक देसी कट्टा हूँ !

तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मै भोला भाला लालू हूँ !
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मै चिड़ियाघर का भालू हूँ !

तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मै अटल बिहारी सा खाली हूँ !
तुम हंसी माधुरी दिक्षित की, मै पुलिसमैन की गाली हूँ !

कल जेल अगर हो जाए प्रिये, दिलवा देना तुम बेल प्रिये !
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये!!

मै ढाबे के ढांचे जैसा, तुम पांच सितारा होटल हो !
मै महुवे का देशी ठर्रा , तुम रेड लेबल की बोतल हो !!

तुम रंगोली का मधुर गीत, मै कृषि दर्शन की झाड़ी हूँ!!
तुम विश्वसुन्दरी सी कमाल, मै तेलिया छाप कबाड़ी हूँ!!

तुम सोनी का हो मोबाइल, मै टेलीफ़ोन वाला हूँ चोंगा !
तुम मछली मानसरोवर की, मै सागर तट का हूँ घोगा !

दस मंजिल से गिर जाउंगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये !
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये!!

Wednesday, February 6, 2013

कितनी गिरहें खोली हैं मैने


कितनी गिरहें खोली हैं मैने
कितनी गिरहें अब बाकी हैं

पाँव  मे पायल,बाँहों में कंगन 
गले में हँसली ,कमरबंद च्हहले और बिछुए
नाक कान छिदवायें गये हैं  
और सेवर जेवर कहते कहते 
रीत रिवाज की रस्सियों से मै जकरी गयी 
उफ्फ !!कितनी तरह मै पकड़ी गयी 
अब छिलने  लग है हाथ पांव 
और कितनी खरासें उभरी हैं 
कितनी गिरहें हैं खोली है मैंने 
कितनी रस्सियाँ उतरी है 


अंग अंग मेरा रूप रंग
मेरे नक़्श नैन, मेरे भोले बैन
मेरी आवाज़ मे कोयल की तारीफ़ हुई
मेरी ज़ुल्फ़ शाम, मेरी ज़ुल्फ़ रात
ज़ुल्फ़ों में घटा, मेरे लब गुलाब
आँखें शराब
गज़लें और नज़्में कहते कहते
मैं हुस्न और इश्क़ के अफ़सानों में जकड़ी गयी

उफ़्फ़ कितनी तरह मैं पकड़ी गयी...

मैं पूछूं ज़रा, मैं पूछूं ज़रा
आँखों में शराब दिखी सबको, आकाश नहीं देखा कोई
सावन भादौ तो दिखे मगर, क्या दर्द नहीं देखा कोई
क्या दर्द नहीं देखा कोई

फ़न की झीनी सी चादर में
बुत छीले गये उरियानि के
तागा तागा करके पोशाक उतारी गयी
मेरे जिस्म पे फ़न की मश्क़ हुई
और आर्ट-कला कहते कहते
संगमरमर मे जकड़ी गयी

उफ़्फ़ कितनी तरह मैं पकड़ी गयी...

बतलाए कोई, बतलाए कोई
कितनी गिरहें खोली हैं मैने
कितनी गिरहें अब बाकी हैं