Tuesday, April 2, 2013

कानपुर


इस शहर में सब कुछ अपना सा लगता है,
जीवन इस शहर में सपना सा लगता है

वो खुबसूरत सी मोतीझील की शाम
हाथों में हाथ लिए प्रणय संबंधों के नाम,

रेव मोती से लेकर जे के टेम्पल का सफ़र
यहाँ होता है नए रिश्ते जुड़ने का काम,

स्टूडेंट्स के है यहाँ दो ठिकाना
कभी बनारसी वाले की चाय तो कभी नालंदा वाले का खाना

अब हॉस्टल का स्टाइल भी घर सा लगता है,
जीवन इस शहर में सपना सा लगता है,

वो चिड़ियाघर जाना, दोस्तों को चिढाना
और गिलहरियों को पॉपकॉर्न खिलाना,

शाम को आना पढ़ते पढ़ते सो जाना
और सपनों में भी कानपूर में खो जाना,

इस शहर के हर एक मोड़ से रिश्ता पुराना सा लगता है,
जीवन इस शहर में सपना सा लगता है.

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