Monday, February 21, 2011

प्यार

नींद आती है नही, चैन खो जाता है |
प्यार में सभी के साथ ऐसा हो जाता है ||
दिल करता हैं की उनसे मिले बार बार |
दिल हर वक्त करता है उन्ही का इंतजार ||
यही है प्यार....
उनकी आवाज कानों में बस जाती है |
हर तरफ उनकी झलक नजर आती है ||
हर पल जवां पर उनका ही नाम होता है |
तन्हां तन्हाई में ऐसा ही होता है ||
दिल उनका दीवाना हो जाता है |
सारी दुनिया से बेगाना हो जाता है ||
मदहोसी छाई होती है |
जिन्दगी उनकी परछाई होती है ||
तीर नजर दिल के पार हो जाता है |
प्यार ही दिल की कहानी का सार हो जाता है |
दस्ती है तन्हाई , चुभती है है परछाई |
पहले नाम उनका बाद में यद् आतें है साईं |
उनके बिन एक भी पल दिल नइयो लगदा |
मरने का या जीने का दिल नइयो करदा||
उनकी नजरें इनायत जब हो जाती है |
हमारी आँखों से नींद खो जाती है ||

Monday, February 7, 2011

प्रेमज्ञान

प्रेमज्ञान दिया जिसने! स्वाभिमान दिया जिसने! मैं गिरा भी अगर तो, दामन थाम लिया जिसने!
पर वही शख्स मुझको भुलाने लगा है! वादा था उम्र भर का पर वो जाने लगा है!
तकलीफ में हूँ लेकिन मैं कह नहीं सकता! हाँ ये सच है के बिन उसके मैं रह नहीं सकता!
आत्मज्ञान दिया जिसने! आत्मसम्मान दिया जिसने! रात में डरने पर, हाथ थाम लिया जिसने!
पर वही शख्स मुझको मुझे तन्हा बनाने लगा है! मेरे शब्दों को मेरे खतों को जलाने लगा है!
उदास हूँ पर बनके अश्क मै बह नहीं सकता! हाँ ये सच है के बिन उसके में रह नहीं सकता!
गुणगान दिया जिसने! बलिदान दिया उसने! मेरी उदासी में, चेहरा थाम लिया जिसने!
पर वही शख्स मुझको मज़बूरी बताने लगा है! नहीं होगा मिलन ये दर्पण दिखाने लगा है!
बेबस हूँ "देव", लेकिन मैं कह नहीं सकता! वो खुदा है, बे-इबादत मैं रह नहीं सकता!!!!

Sunday, February 6, 2011

विरह की बेबसी

"अब आ भी जाओ,ये तन्हाई रुलाती है हमें !
विरहा में सर्द हवा और सताती है हमें !
तड़प के-डर से, तेरे खवाबों से बचना चाहा!
नींद में घेर न लें, रात भर जगना चाहा!
...बंद दरवाजा, फिर खिड़की पर परदे ढक कर ,
पलक दबाने को उनपर हाथ जो रखना चाहा!
बस यही बात तो अग्नि में जलाती है हमें!
हाथ की अंगूठी तेरी याद दिलाती है हमें!

अब आ भी जाओ,ये तन्हाई रुलाती है हमें.............................

तड़प के डर से ये, काम भी करना चाहा!
धोये कपड़े,तो कभी गेंहू फटकना चाहा!
काम निबटाये, पानी भरके फिर नहाकर के,
सुखाके बाल, भीगे वस्त्र बदलना चाहा!
बस यही बात तो लज्जा में डूबाती है हमें!
उनकी तस्वीर आईने में, नज़र आती है हमें!


अब आ भी जाओ,ये तन्हाई रुलाती है हमें.............................

तड़प के डर से चेहरा भी पलटना चाहा!
भागकर, दौड़कर कमरे से निकलना चाहा!
धूप की आंच में कपड़ो को सुखाने के लिए,
मैंने सीढ़ी से अपनी छत्त पर पहुंचना चाहा!

"देव" ये बात तो लज्जा में डुबाती है हमें!
उनकी चिठ्ठी लिए, मेरी सास बुलाती है हमें!


"" प्रेम के लिए किसी इंसान का प्रत्यक्ष होना जरुरी नहीं, प्रेम तो परोक्ष रूप से भी किया जाता है! तो आइये विरह के इन नाजुक लम्हों की प्राप्ति को प्रेम करैं.

Saturday, February 5, 2011

दोस्ती

फूलों सी नाजुक चीज है दोस्ती,

सुर्ख गुलाब की महक है दोस्ती,

सदा हँसने हँसाने वाला पल है दोस्ती,

दुखों के सागर में एक कश्ती है दोस्ती,

काँटों के दामन में महकता फूल है दोस्ती,

जिंदगी भर साथ निभाने वाला रिश्ता है दोस्ती,

रिश्तों की नाजुकता समझाती है दोस्ती,

रिश्तों में विश्वास दिलाती है दोस्ती,

तन्हाई में सहारा है दोस्ती,

मझधार में किनारा है दोस्ती,

जिंदगी भर जीवन में महकती है दोस्ती,

किसी-किसी के नसीब में आती है दोस्ती,

हर खुशी हर गम का सहारा है दोस्ती,

हर आँख में बसने वाला नजारा है दोस्ती,

कमी है इस जमीं पर पूजने वालों की वरना इस जमीं पर "भगवान" है दोस्ती .........