Saturday, June 15, 2013

वक़्त नहीं

हर ख़ुशी है लोगों के दामन में
पर एक हंसी के लिए वक़्त नहीं
दिन रात दौड़ती दुनिया में
ज़िन्दगी के लिए ही वक़्त नहीं..

माँ की लोरी का एहसास तो है
पर माँ को माँ कहने का वक़्त नहीं
सारे रिश्तों को हम मार चुके
अब उन्हें दफनाने का भी वक़्त नहीं..

सारे नाम मोबाइल में हैं
पर दोस्ती के लिए वक़्त नहीं
गैरों की क्या बात करें, जनाब,
जब अपनों के लिए ही वक़्त नहीं..

आँखों में है नींद बड़ी
पर सोने का वक़्त नहीं
दिल है ग़मों से भरा हुआ
पर रोने का वक़्त नहीं..

पैसों की दौड़ में ऐसे दौड़े
की थकने का भी वक़्त नहीं
पराये एहसानों की क्या कद्र करें
जब अपने सपनों के लिए ही वक़्त नहीं..

तू ही बता ऐ ज़िन्दगी
इस ज़िन्दगी का क्या होगा
की हर पल मरने वालों को
जीने का भी वक़्त नहीं..