कोई पैगाम नहीं ......
जो गुजर गयी उसकी क्यों शाम नहीं......
लाख तदबीर की दर्द-ए-दिल को क्यों आराम नहीं ......
मेरे नाम से क्यों तू गुमनाम नहीं ....
हर शक्श की किस्मत मै क्यों इनाम नहीं .....
माना दिल के अहसासों का कोई दाम नहीं ....
पर मेरी कहानी मै अब क्यों तेरा नाम नहीं ....
मुझे डर है आरज़ू न तेरी मिट जाये “शमा”....
कई दिनों से तेरा कोई पयाम, कोई पैगाम नहीं ......
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