Friday, December 31, 2010

नव वर्ष मंगलमय हो

सुरभित जीवन का हर छड़ हो,
काँटों में लिखने का हर्ष....
कठिन डगर पर , जोश न कम हो,
मंगलमय हो यह नव वर्ष ....

Thursday, December 2, 2010

गरीब इन्सान

पग पग संकट इस दुनिया में, दोस्त गरीब इन्सान को.
देता है भगवन भी दौलत, दौलतमंद इन्सान को ..
भूख मिटाता सबकी है वो, भूखा रहकर हर शाम को .
कर दे अर्पण अपना सबकुछ ,दौलत वालों की आराम को.
जुल्म है सहना पड़ता उसको , हर दिन हर शाम को..
दौलत की खातिर ही बेंचे, इन्सान ही इन्सान को.
पग पग संकट इस दुनिया में, दोस्त गरीब इन्सान को.
देता है भगवन भी दौलत, दौलतमंद इन्सान को ..

जिंदगी का सफ़र

मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर……….. इस एक पल मे’ जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और…. जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और…. जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती । ये सिलसिला यहीं चलता रहता….. फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा………. ” तुम हार कर भी मुस्कुराते हो! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का? “ तब मैंनें कहा……………. मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी, तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं…… तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ रुकुन्गा……. एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा………. बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा। ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा……… मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी…… मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी, ......

हकीकत जिंदगी की

जब भी दिल में कोई तूफ़ान उढ़ता है.
गैरो का नही अपना ही दिल जलता है.
कहने को तो गैर ही दुसमन होते है. पर
दिल का दर्द तो अपनों से मिलता है.
फिर भी दिल में उनके लिए प्यार उमड़ता है.||
जब भी दिल में कोई ..........................
जिन्दगी में कभी कभी ऐसा वक्त आता है .
जब मन हमारे दिल पर मुस्कुराता है.
दिल बेचारा खुद को अकेला पाता है.
सब कुछ होकर भी वो आंसू बहाता है.
क्योकि वो चोट अपनों से पाता है.
जब भी दिल में कोई तूफ़ान आता है.......
जिनके लिए यह गाता है गुनगुनाता है.
आखिर उन्ही से दर्द का इनाम पाता है..
क्योकि वह उनसे वफ़ा चाहता है.
जिन्हें सिर्फ अपने लिए जीना आता है.
फिर निराश होकर वो खुद को भूल जाता है..

मेरी खामोशी

मेरी खामोशियों में भी फसाना ढूंढ लेती है
बड़ी शातिर है ये दुनिया बहाना ढूंढ लेती है
हकीकत जिद किए बैठी है चकनाचूर करने को
मगर हर आंख फिर सपना सुहाना ढूंढ लेती है
न चिडि़या की कमाई है न कारोबार है कोई
वो केवल हौसले से आबोदाना ढूंढ लेती है
समझ पाई न दुनिया मस्लहत मंसूर की अब तक
जो सूली पर भी हंसना मुस्कुराना ढूंढ लेती है
उठाती है जो खतरा हर कदम पर डूब जाने का
वही कोशिश समन्दर में खजाना ढूंढ लेती है
जुनूं मंजिल का, राहों में बचाता है भटकने से
मेरी दीवानगी अपना ठिकाना ढूंढ लेती है ..