सुन्न हो गयी हजारों आवाजें पुकारते पुकारते |
अपलक रह गयी कितनी निगाहें, निहारते निहारते ||
कहीं मांग का सिन्दूर, तो कहीं राखी का रिश्ता |
कहीं सूनी गोद हुए तो कहीं आसरा ही छूटा. ||
'उफ़! क्यूँ है ये मंज़र बेबसी का ', इस् से क्या होगा ..|
हर हाथ बढे सहारा बन यही है बेहतर मौका ||
आज इंसान के भीतर, इंसान को जगाना होगा , ||
ऐ खुदा! तेरे इम्तेहान का दूसरा पहलू भी निभाना होगा ||||||||
अपलक रह गयी कितनी निगाहें, निहारते निहारते ||
कहीं मांग का सिन्दूर, तो कहीं राखी का रिश्ता |
कहीं सूनी गोद हुए तो कहीं आसरा ही छूटा. ||
'उफ़! क्यूँ है ये मंज़र बेबसी का ', इस् से क्या होगा ..|
हर हाथ बढे सहारा बन यही है बेहतर मौका ||
आज इंसान के भीतर, इंसान को जगाना होगा , ||
ऐ खुदा! तेरे इम्तेहान का दूसरा पहलू भी निभाना होगा ||||||||
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