Wednesday, July 10, 2013

दूसरा पहलू

सुन्न हो गयी हजारों आवाजें पुकारते पुकारते |
अपलक रह गयी कितनी निगाहें, निहारते निहारते ||
कहीं मांग का ‎सिन्दूर, तो कहीं ‎राखी का रिश्ता |
कहीं सूनी गोद हुए तो कहीं ‎ आसरा ही छूटा. ||
'उफ़! क्यूँ है ये मंज़र बेबसी का ', इस् से क्या होगा ..|
हर हाथ बढे  ‎सहारा बन यही है बेहतर मौका ||
आज ‎इंसान के भीतर, इंसान को जगाना होगा , ||
ऐ ‎ खुदा! तेरे इम्तेहान का दूसरा पहलू भी निभाना होगा ||||||||

No comments:

Post a Comment