Saturday, June 25, 2011

शायरी

न कत्ल करते हैं, न जीने की दुआ देते हैं,
लोग किस जुर्म की आखिर ये सज़ा देते है ।
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यूं तो मंसूर बने फिरते हैं कुछ लोग,
होश उड जाते हैं जब सिर का सवाल आता है ।
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मुझे तो होश नही, तुमको खबर हो शायद ,
लोग कहते है कि तुम ने मुझ को बर्बाद कर दिया ।
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आखिर काम कर गए लोग ,
सच कहा और मर गए हम लोग ।
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बस्ती मे सारे लोग लहू मे नहा गए,
लह्ज़ा नए खीताब का कितना अजीब था ।
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देखिए गौर से रुक कर किसी चौराहे पर,
जिंदगी लोग लिए फिरते हैं लाशों के तरह ।
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इस नगर मे लोग फिरते है मुखौटे पहन कर,
असल चेहरों को यहां पह्चानना मुमकिन नही ।
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कुछ लोग ज़माने ऐसे भी तो होते हैं ,
महफिल में जो हंसते हैं, तन्हाई मे रोते हैं ।

Monday, June 13, 2011

कौन हूँ मैं

कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक दोस्त है कच्चा पक्का सा ,
एक झूठ है आधा सच्चा सा .
जज़्बात को ढके एक पर्दा बस ,
एक बहाना है अच्छा अच्छा सा .
जीवन का एक ऐसा साथी है ,
जो दूर हो के पास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
हवा का एक सुहाना झोंका है ,
कभी नाज़ुक तो कभी तुफानो सा .
शक्ल देख कर जो नज़रें झुका ले ,
कभी अपना तो कभी बेगानों सा .
जिंदगी का एक ऐसा हमसफ़र ,
जो समंदर है , पर दिल को प्यास नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,
तुम कह देना कोई ख़ास नहीं .
एक साथी जो अनकही कुछ बातें कह जाता है ,
यादों में जिसका एक धुंधला चेहरा रह जाता है .
यूँ तो उसके न होने का कुछ गम नहीं ,
पर कभी - कभी आँखों से आंसू बन के बह जाता है .
यूँ रहता तो मेरे तसव्वुर में है ,
पर इन आँखों को उसकी तलाश नहीं .
कोई तुमसे पूछे कौन हूँ मैं ,

Saturday, June 11, 2011

ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो

दर्द कैसा भी हो आंख नम न करो.
रात काली सही कोई गम न करो|
एक सितारा बनो जगमगाते रहो.
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो||
बांटनी है अगर बाँट लो हर ख़ुशी
गम न ज़ाहिर करो तुम किसी पर कभी|
दिल कि गहराई में गम छुपाते रहो
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो||
अश्क अनमोल है खो न देना कहीं.
इनकी हर बूँद है मोतियों से हसीं|
इनको हर आंख से तुम चुराते रहो.
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो||
फासले कम करो दिल मिलाते रहो.
ज़िन्दगी में सदा मुस्कुराते रहो||||

Sunday, June 5, 2011

देश

मिल कर लूट खसोट रहे सब , क्या "पवार" क्या "नीरा" ...

सारे देश की नसबंदी कर दी , बिन टांका बिन चीरा...



देश जाय जहन्नुम में ..या कोई जिए बदहाली में ..
...

माई दादा देख रहे मैच किरकेट का मोहाली में



मन्नू को दिखी नेकनीयत युसूफ रजा गिलानी में ..

बस किरकिट ही किरकिट बचा गली मोहल्ला खलिहानी में



जांघिये में पैबंद लगी ..नाडा नहीं पैजामी में

फिर भी नाच रहा मस्त मंगरुआ ..अपनी ही नादानी में ..



कल तक पियाज पेट्रोल का रोना रो रहे थे कंगाली में

पेप्सी कोक के खेल में उलझे ..रोटी नहीं है थाली में ..



शायद सब भूले कैसे अरबो खाए रजा और कलमाडी ने..

प्यार

राज़ गहरा है
जुबाँ पे पहरा है

मन की आँखों के बगैर
नज़र आता नहीं

कीमत चूका नहीं सकते
मुफ्त पा नहीं सकते

ना हो तो मुसीबत
हो जाये तो परेशानी

मिल जाये तो मिट्टी है
खो जाये तो सोना है

ये प्यार भी क्या बला है
कह भी नहीं सकते
रह भी नहीं सकते