Sunday, June 5, 2011

देश

मिल कर लूट खसोट रहे सब , क्या "पवार" क्या "नीरा" ...

सारे देश की नसबंदी कर दी , बिन टांका बिन चीरा...



देश जाय जहन्नुम में ..या कोई जिए बदहाली में ..
...

माई दादा देख रहे मैच किरकेट का मोहाली में



मन्नू को दिखी नेकनीयत युसूफ रजा गिलानी में ..

बस किरकिट ही किरकिट बचा गली मोहल्ला खलिहानी में



जांघिये में पैबंद लगी ..नाडा नहीं पैजामी में

फिर भी नाच रहा मस्त मंगरुआ ..अपनी ही नादानी में ..



कल तक पियाज पेट्रोल का रोना रो रहे थे कंगाली में

पेप्सी कोक के खेल में उलझे ..रोटी नहीं है थाली में ..



शायद सब भूले कैसे अरबो खाए रजा और कलमाडी ने..

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