Thursday, January 20, 2011

प्रेम

"ढाई आख़र प्रेम के पता नहीं, फिर प्रेम की भाषा क्यूँ?
हिम्मत नहीं है दिल में, फिर प्रेम की अभिलाषा क्यूँ?
प्रेम में होता है समर्पण, प्रेम में होती हैं प्रार्थनायें!
प्रेम में होता है यकीन, प्रेम में होती हैं कामनायें!
छोड़ते हो किसी को, तो फिर यह जिज्ञासा क्यूँ?
...
प्रेम में होती है जरुरत, प्रेम में होती हैं भावनायें!
प्रेम में होता है अस्तित्व, प्रेम में होती हैं रचनायें!
तोड़ते हो किसी का दिल, तो फिर यह आशा क्यूँ?


प्रेम के बिन बड़ी कठिनता, प्रेम के बिन हैं समस्याएँ!
प्रेम के बिन बड़ी नीरसता, प्रेम के बिन हैं दुखद्तायें!
"देव" मुंह मोड़ते हो किसी से,तो फिर यह हताशा क्यूँ?


ढाई आख़र प्रेम के पता नहीं, फिर प्रेम की भाषा क्यूँ?
हिम्मत नहीं है दिल में, फिर प्रेम की अभिलाषा क्यूँ?

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