Thursday, December 2, 2010
जिंदगी का सफ़र
मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर……….. इस एक पल मे’ जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और…. जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती । युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और…. जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती । ये सिलसिला यहीं चलता रहता….. फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा………. ” तुम हार कर भी मुस्कुराते हो! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का? “ तब मैंनें कहा……………. मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी, तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं…… तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ रुकुन्गा……. एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा………. बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा। ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा……… मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी…… मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई थी और अपनी हार पर भी ना रो पायेगी, ......
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