Monday, February 7, 2011

प्रेमज्ञान

प्रेमज्ञान दिया जिसने! स्वाभिमान दिया जिसने! मैं गिरा भी अगर तो, दामन थाम लिया जिसने!
पर वही शख्स मुझको भुलाने लगा है! वादा था उम्र भर का पर वो जाने लगा है!
तकलीफ में हूँ लेकिन मैं कह नहीं सकता! हाँ ये सच है के बिन उसके मैं रह नहीं सकता!
आत्मज्ञान दिया जिसने! आत्मसम्मान दिया जिसने! रात में डरने पर, हाथ थाम लिया जिसने!
पर वही शख्स मुझको मुझे तन्हा बनाने लगा है! मेरे शब्दों को मेरे खतों को जलाने लगा है!
उदास हूँ पर बनके अश्क मै बह नहीं सकता! हाँ ये सच है के बिन उसके में रह नहीं सकता!
गुणगान दिया जिसने! बलिदान दिया उसने! मेरी उदासी में, चेहरा थाम लिया जिसने!
पर वही शख्स मुझको मज़बूरी बताने लगा है! नहीं होगा मिलन ये दर्पण दिखाने लगा है!
बेबस हूँ "देव", लेकिन मैं कह नहीं सकता! वो खुदा है, बे-इबादत मैं रह नहीं सकता!!!!

No comments:

Post a Comment