Sunday, February 17, 2013

मै

तुम नयी विदेशी मिक्सी हो,मै पत्थर का सिलबट्टा हूँ !
तुम AK 47 जैसी, मै तो एक देसी कट्टा हूँ !

तुम चतुर राबड़ी देवी सी, मै भोला भाला लालू हूँ !
तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मै चिड़ियाघर का भालू हूँ !

तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मै अटल बिहारी सा खाली हूँ !
तुम हंसी माधुरी दिक्षित की, मै पुलिसमैन की गाली हूँ !

कल जेल अगर हो जाए प्रिये, दिलवा देना तुम बेल प्रिये !
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये!!

मै ढाबे के ढांचे जैसा, तुम पांच सितारा होटल हो !
मै महुवे का देशी ठर्रा , तुम रेड लेबल की बोतल हो !!

तुम रंगोली का मधुर गीत, मै कृषि दर्शन की झाड़ी हूँ!!
तुम विश्वसुन्दरी सी कमाल, मै तेलिया छाप कबाड़ी हूँ!!

तुम सोनी का हो मोबाइल, मै टेलीफ़ोन वाला हूँ चोंगा !
तुम मछली मानसरोवर की, मै सागर तट का हूँ घोगा !

दस मंजिल से गिर जाउंगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये !
मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नहीं है खेल प्रिये!!

Wednesday, February 6, 2013

कितनी गिरहें खोली हैं मैने


कितनी गिरहें खोली हैं मैने
कितनी गिरहें अब बाकी हैं

पाँव  मे पायल,बाँहों में कंगन 
गले में हँसली ,कमरबंद च्हहले और बिछुए
नाक कान छिदवायें गये हैं  
और सेवर जेवर कहते कहते 
रीत रिवाज की रस्सियों से मै जकरी गयी 
उफ्फ !!कितनी तरह मै पकड़ी गयी 
अब छिलने  लग है हाथ पांव 
और कितनी खरासें उभरी हैं 
कितनी गिरहें हैं खोली है मैंने 
कितनी रस्सियाँ उतरी है 


अंग अंग मेरा रूप रंग
मेरे नक़्श नैन, मेरे भोले बैन
मेरी आवाज़ मे कोयल की तारीफ़ हुई
मेरी ज़ुल्फ़ शाम, मेरी ज़ुल्फ़ रात
ज़ुल्फ़ों में घटा, मेरे लब गुलाब
आँखें शराब
गज़लें और नज़्में कहते कहते
मैं हुस्न और इश्क़ के अफ़सानों में जकड़ी गयी

उफ़्फ़ कितनी तरह मैं पकड़ी गयी...

मैं पूछूं ज़रा, मैं पूछूं ज़रा
आँखों में शराब दिखी सबको, आकाश नहीं देखा कोई
सावन भादौ तो दिखे मगर, क्या दर्द नहीं देखा कोई
क्या दर्द नहीं देखा कोई

फ़न की झीनी सी चादर में
बुत छीले गये उरियानि के
तागा तागा करके पोशाक उतारी गयी
मेरे जिस्म पे फ़न की मश्क़ हुई
और आर्ट-कला कहते कहते
संगमरमर मे जकड़ी गयी

उफ़्फ़ कितनी तरह मैं पकड़ी गयी...

बतलाए कोई, बतलाए कोई
कितनी गिरहें खोली हैं मैने
कितनी गिरहें अब बाकी हैं

Sunday, February 3, 2013

मेरा गाँव अच्छा है

बड़ा भोला बड़ा सादा बड़ा सच्चा है
तेरे शहर से तो मेरा गाँव अच्छा है
वहां मैं मेरे बाप के नाम से जाना जाता हूँ
और यहाँ मकान नंबर से पहचाना जाता हूँ
वहां फटे कपड़ो में भी तन को ढापा जाता है
यहाँ खुले बदन पे टैटू छापा जाता है ...
यहाँ कोठी है बंगले है और कार है
वहां परिवार है और संस्कार है
यहाँ चीखो की आवाजे दीवारों से टकराती है
वहां दुसरो की सिसकिया भी सुनी जाती है ... ...
यहाँ शोर शराबे में मैं कही खो जाता हूँ
वहां टूटी खटिया पर भी आराम से सो जाता हूँ
यहाँ रात को बहार निकलने में दहशत है
वहां रात में भी बहार घुमने की आदत है
यहाँ मिस्टर कालीचरण कह कर बुलाते है
वहां कल्लू काका कह कर चरणों में शीश झुकाते है
मत समझो कम हमें की हम गाँव से आये है
तेरे शहर के बाज़ार मेरे गाँव ने ही सजाये है
वह इज्जत में सर सूरज की तरह ढलते है
चल आज हम उसी गाँव में चलते है .