Monday, August 13, 2012

रिश्तों के मायने

रिश्तों के मायने बदल जाते हैं,
 नए दायरों में जब बंध जाते हैं.
 खो जाती है अंतरंगता कहीं दूर
 तेवर बदले बदले नज़र आते हैं.
 साथ ही पले ,बड़े होते हैं सब
सुख दुःख में रोते हँसते जब
क्यों दूरियां बढा लेते हैं इतनी
 कि अपने दुश्मन बन जाते हैं.

 जिस खून से रिश्ता जुड़ा,प्यासे
 उसी के जाने कैसे बन जाते हैं.
 स्वार्थ के चश्मे से उजला नहीं
बस केवल स्याह ही देख पाते हैं.

 धन यश सब कुछ पा लेते हैं ,
 बस अपनेपन को ठुकराते हैं,
रिश्ते अनमोल होते हैं जग में ,
 उनका मोल नहीं जान पाते हैं.

 आओ मिटा देते हैं कटुता सभी ,
 मिठास से रिश्तों को सजाते हैं
 दीवारें घृणा की नहीं आओ ,
 रिश्तों का उपवन महकाते हैं.